भगवान भोलेनाथ की बेलपत्र से पूजा करने से सभी संकट दूर होते है ।
दूर्वा से पूजन करने दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है।
हरसिंगार के फूलों से पूजन करने पर जीवन में सुख-संपत्ति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
भगवान भोलेनाथ पर चमेली के फूल चढ़ाने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है।
भगवान भोलेनाथ की धतूरे से पूजन करने पर भगवान शंकर सुयोग्य पुत्र प्रदान करते हैं, जो कुल का नाम रोशन करता है।
भगवान भोलेनाथ की आंकड़े के फूल से पूजन, श्रंगार करने से जीवन के सभी सुख मिलते है, पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भगवान भोलेनाथ की अलसी के फूलों से पूजन करने से मनुष्य सभी देवताओं का प्रिय हो जाता है।
भगवान भोलेनाथ की बेला के फूल से पूजन करने पर मनचाहा, सुंदर जीवनसाथी मिलता है।
भगवान भोलेनाथ की जूही के फूल से पूजन करने से घर कारोबार में धन धान्य की कोई भी कमी नहीं होती है।
अपनी प्राचीनतम, पवित्रता एवं पापनाशकता आदि के कारण प्रसिद्ध उज्जयिनी की प्रमुख नदी शिप्रा सदा स्मरणीय है। यजुर्वेद में शिप्रे अवेः पयः पद के द्वारा इस नदी के स्मरण हुआ है। निरू- क्त में शिप्रा कस्मात ? इस प्रश्न को उपस्थित करके उत्तर दिया गया है कि – शिवेन पातितं यद रक्तं तत्प्रभवति, तस्मात। अर्थात शिप्रा क्यों कही जाती है ? इसका उत्तर था – शिवजी के द्वारा जो रक्त गिराया वही यहाँ अपना प्रभाव दिखला रहा है – नदी के रूप में बह रहा है, अतः यह शिप्रा है।
शिप्रा और सिप्रा ये दोनों नाम अग्रिम ग्रन्थों में प्रयुक्त हुए हैं। इनकी व्युत्पत्तियाँ भी क्रमशः इस प्रकार प्रस्तुत हुई है – ‘शिवं प्रापयतीति शिप्रा’ और ‘सिद्धिं प्राति पूरयतीत सिप्रा’
। और कोशकारों ने सिप्रा को अर्थ करधनी भी किया । तदनुसार यह नदी उज्जयिनी के तीन ओर से बहने के कारण करधनीरूप मानकर भी सिप्रा नाम से मण्डित हुई। उन दोनों नामों को
साथ इसे क्षिप्रा भी कहा जाता है। यह उसके जल प्रवाह की द्रुत- गति से सम्बद्ध प्रतीत होता है। स्कन्दपुराण में शिप्रा नदी का बड़ा माहात्म्य बतलाया है। यथा-
नास्ति वत्स ! महीपृष्ठे शिप्रायाः सदृशी नदी ।
यस्यास्तीरे क्षणान्मुक्तिः कच्चिदासेवितेन वै।।
हे वत्स ! इस भू-मण्डल पर शिप्रा के समान अन्य नदी नहीं है। क्योंकि जिसके तीर पर कुछ समय रहने से, तथा स्मरण, स्नानदा – नादि करने से ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है।
वहीं शिप्रा का उत्पत्ति के सम्बन्ध में कथा भी वर्णित है, जिसमें कहा गया है कि – विष्णु की अँगुली को शिव के द्वारा काटने पर उसका रक्त गिरकर बहने से यह नदी के रूप में प्रवाहित हुई। इसीलिये विष्णु-देहात समुत्पन्ने शिप्रे ! त्वं पापनाशिनी – इत्यादि पदों से शिप्रा की स्तुती की गई है। वहीं अन्य प्रसङ्ग से शिप्रा को गड़गा भी कहा गया है।