श्रावण मास शिवभक्तों के लिए अत्यंत पावन समय होता है। इस महीने में शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए अनेक भक्त पार्थिव शिवलिंग और नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं। परंतु, क्या आपने कभी सोचा है कि मिट्टी से बना शिवलिंग या नर्मदा शिला से बने शिवलिंग का इतना विशेष महत्व क्यों है? आइए इस लेख में इसका गहराई से विश्लेषण करते हैं।
🌿 क्या है पार्थिव शिवलिंग?
‘पार्थिव’ शब्द का अर्थ है ‘पृथ्वी तत्व से बना हुआ’। पार्थिव शिवलिंग मिट्टी से बनाया जाता है, और यह प्राचीन शास्त्रों में सबसे प्रभावशाली शिवपूजा के रूप में माना गया है।
इसके लाभ:
- रोग, कर्ज और मृत्यु भय से मुक्ति
- शनि, राहु जैसे ग्रह दोषों की शांति
- पितृ दोष और कालसर्प दोष का निवारण
शास्त्रों में कहा गया है:
“पार्थिवं लिंगमालभ्य पूजितं शंकरप्रियम्”
👉 अर्थात, “मिट्टी का शिवलिंग भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है।”
🌿 नर्मदेश्वर शिवलिंग क्या है?
नर्मदेश्वर शिवलिंग नर्मदा नदी से मिलने वाली स्वाभाविक रूप से गोल-ओवल आकार की शिला होती है। यह शिला बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के शिवलिंग का स्वरूप धारण करती है, इसलिए इसे स्वयंभू शिवलिंग माना जाता है।
लाभ:
- रोगों से मुक्ति और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा
- पितृ दोष और अकाल मृत्यु का नाश
- श्रावण मास में इसका अभिषेक विशेष फलदायी माना गया है
स्कंद पुराण में उल्लेख:
“नर्मदा जलसम्भूता लिंगा मम प्रियं सदा।”
👉 “नर्मदा से उत्पन्न लिंग मुझे सदा प्रिय हैं।”
🌿 क्या है वाणेश्वर कथा?
वाणेश्वर यानी बाण + ईश्वर। यह कथा राक्षस बाणासुर की है, जिसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हजारों पार्थिव शिवलिंग बनाए और पूजन किया। उसकी इस घोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने कहा:
“पार्थिव लिंग पूजा मुझको सबसे प्रिय है।”
यही कारण है कि आज भी उज्जैन, काशी, हरिद्वार आदि तीर्थों में हजार पार्थिव शिवलिंग पूजन की परंपरा है।
🌿 पार्थिव शिवलिंग पूजन के विशेष लाभ
- यह पूजा साकार और प्राकृतिक दोनों का समन्वय है
- जल, दूध, पंचामृत, पुष्प और बिल्वपत्र से अभिषेक किया जाता है
- पूजा के बाद शिवलिंग का विसर्जन प्रकृति में कर दिया जाता है
विशेषताएं:
- सरल, सस्ती और तुरंत फलदायी
- मानसिक तनाव, भय और चिंता का नाश
- ग्रहदोषों में राहत
- श्रावण सोमवार को इसका फल कई गुना बढ़ जाता है
शास्त्रों से:
“सकलान्कामानाप्नोति शिवलोके महीयते।”
👉 अर्थात, “यह पूजा सभी इच्छाओं की पूर्ति करती है और शिवलोक में स्थान दिलाती है।”
🌿 क्या भगवान को हमारे बनाए रूप की पूजा पसंद है?
यह प्रश्न बड़ा सुंदर है। शिव निराकार भी हैं और साकार भी। जब हम मिट्टी से शिवलिंग बनाते हैं, तो हम यह स्वीकार करते हैं कि:
- हम भी उसी मिट्टी का हिस्सा हैं
- पूजा के बाद विसर्जन से यह समझ आता है कि सब कुछ शिव में ही समाहित है
यही है असली भक्ति का दर्शन:
“मैं भी तुझमें हूं, तू भी मुझमें है।”
निष्कर्ष:
श्रावण मास में पार्थिव और नर्मदेश्वर शिवलिंग पूजन केवल धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मिक और ब्रह्मांडीय एकता को समझने की प्रक्रिया है। यह साधना न केवल बाह्य जीवन में फलदायक है, बल्कि भीतरी आत्मिक शांति का भी माध्यम है।
हर भक्त को इस श्रावण में कम से कम एक बार पार्थिव शिवलिंग पूजा अवश्य करनी चाहिए।